भारतीय रुपया हाल ही में अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 88.27 प्रति डॉलर पर पहुंच गया। कारोबारी सत्र के दौरान यह 88.38 तक भी लुढ़का। इस गिरावट ने आम लोगों से लेकर सरकार तक की चिंता बढ़ा दी है। आइए समझते हैं कि रुपये की इस कमजोरी के पीछे क्या कारण हैं और सरकार इसका जवाब कैसे दे रही है।
क्या है रुपये की गिरावट का कारण
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रुपये की कमजोरी का ठीकरा अमेरिकी नीतियों पर फोड़ा है। खासकर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए 50% तक के भारी टैरिफ को इसका बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसमें से 25% टैरिफ रूस से कच्चा तेल खरीदने की वजह से जुर्माने के तौर पर लगाया गया है। इस नीति ने भारत के कपड़ा, गहने, झींगा, चमड़ा, रसायन और मशीनरी जैसे क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि, दवाओं और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कुछ सेक्टरों को छूट मिली है।
अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2024-25 में दोनों देशों के बीच 131.8 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत का निर्यात 86.5 अरब डॉलर और आयात 45.3 अरब डॉलर रहा। ऐसे में अमेरिकी टैरिफ का असर न सिर्फ निर्यातकों पर पड़ा, बल्कि रुपये की कीमत पर भी भारी दबाव बना।
सरकार और RBI का रुख इसको लेकर क्या है?
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार रुपये की स्थिति पर करीबी नजर रख रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने भी सरकारी बैंकों के जरिए बाजार में हस्तक्षेप कर रुपये की और गिरावट को रोकने की कोशिश की है। सीतारमण ने यह भी साफ किया कि यह कमजोरी सिर्फ रुपये तक सीमित नहीं है, बल्कि दुनिया की कई अन्य मुद्राएं भी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई हैं।
जीएसटी सुधार से मिलेगी आम आदमी को राहत
रुपये की कमजोरी के बीच सरकार ने आम लोगों को राहत देने के लिए जीएसटी में बड़े सुधार किए हैं। सीतारमण ने इन्हें “जनता के लिए सुधार” बताया है। इन सुधारों के तहत रोजमर्रा की जरूरी चीजों पर टैक्स की दरों में भारी कटौती की गई है। इससे घरेलू खर्चों में कमी आएगी और लोग ज्यादा खरीदारी कर सकेंगे।
वित्त मंत्री ने कहा कि कई कंपनियां पहले ही कार, जूते, कपड़े और बीमा पॉलिसियों की कीमतें कम करने की घोषणा कर चुकी हैं। 22 सितंबर से नई जीएसटी दरें लागू होने के बाद और कंपनियों से ऐसी कटौती की उम्मीद है। इन बदलावों को 2017 के बाद का सबसे बड़ा कर सुधार बताया जा रहा है, जो 140 करोड़ भारतीयों के जीवन को प्रभावित करेगा।
आम आदमी पर असर कितना होगा?
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ सकता है। पेट्रोल-डीजल, मोबाइल फोन, लैपटॉप और विदेश यात्रा जैसी चीजें महंगी हो सकती हैं। लेकिन जीएसटी सुधारों से रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें सस्ती होंगी, जिससे कुछ हद तक राहत मिलेगी।
सीतारमण ने भरोसा दिलाया कि सरकार और RBI मिलकर रुपये को स्थिर करने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। साथ ही, अमेरिकी टैरिफ के असर को कम करने के लिए संबंधित मंत्रालयों के साथ रणनीति बनाई जा रही है। जीएसटी सुधारों से उपभोग बढ़ने और अर्थव्यवस्था को गति मिलने की उम्मीद है।
आपकी क्या राय है?
अपनी प्रतिक्रिया यहां साझा करें — हमें जानकर खुशी होगी कि आप इस खबर के बारे में कैसा महसूस कर रहे है!