अमेरिका ने भारत और चीन पर रूस से तेल खरीदने को लेकर बड़ा दबाव बनाना शुरू कर दिया है. उसका कहना है कि रूस से सस्ता तेल खरीदने वाले इन देशों पर ऊंचा टैरिफ लगाया जाए. अमेरिका का मानना है कि रूसी तेल की बिक्री से रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए ज्यादा फंड मिल रहा है जिससे युद्ध लंबा खिंच सकता है.
G7 देशों पर दबाव
अमेरिका ने G7 देशों (जापान, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली और अमेरिका) से कहा है कि वे भारत और चीन पर कड़े टैरिफ लगाएं. फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक G7 देशों ने रूस पर कई सख्त पाबंदियां लगाई हैं लेकिन भारत और चीन ने इस दौरान रूस से भारी मात्रा में तेल खरीदा. इससे पश्चिमी देशों की रणनीति को झटका लगा है. अमेरिका चाहता है कि रूस से तेल खरीदने की “कीमत” इन देशों को चुकानी पड़े ताकि रूस की आर्थिक ताकत कम हो.
भारत के लिए क्यों है मुश्किल?
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है. रूस से सस्ता तेल खरीदकर भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया और पेट्रोल-डीजल की कीमतों को काबू में रखा. लेकिन अगर अमेरिका और G7 देश हाई टैरिफ लगाते हैं तो भारत को महंगा तेल खरीदना पड़ सकता है. इससे न सिर्फ पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं बल्कि दूसरी चीजों की कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं. इसका असर आम आदमी की जेब और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है.
रूस-चीन की बढ़ती नजदीकी
इस बीच, रूस और चीन के बीच आर्थिक रिश्ते और मजबूत हो रहे हैं. हाल ही में चीन ने रूस की एनर्जी कंपनियों को अपनी मुद्रा (रॅन्मिनबी) में फंड जुटाने की इजाजत दी है. ‘पांडा बॉन्ड‘ के जरिए रूसी कंपनियां अब चीन में पूंजी जुटा सकती हैं. यह कदम दोनों देशों की दोस्ती को और गहरा कर रहा है जिससे अमेरिका और G7 देशों की चिंता बढ़ रही है.
अमेरिका का यह कदम भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है. एक तरफ सस्ता तेल भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है वहीं दूसरी तरफ अमेरिका जैसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ रिश्तों का संतुलन बनाना भी जरूरी है. अगर टैरिफ बढ़ता है तो भारत को अपनी नीतियों पर फिर से विचार करना पड़ सकता है. आने वाले दिनों में यह मुद्दा वैश्विक कूटनीति और अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डाल सकता है.

