H-1B वीजा फीस 100K डॉलर: भारतीय आईटी वाले फंस गए!

Rajveer Singh
H-1B वीजा फीस 100K डॉलर: भारतीय आईटी वाले फंस गए!

नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए एक्जीक्यूटिव ऑर्डर ने हाई-स्किल्ड वर्कर्स के सपनों पर पानी फेर दिया है. H-1B वीजा की फीस को अचानक 1000 डॉलर से बढ़ाकर 1 लाख डॉलर सालाना कर दिया गया है. ये बदलाव 21 सितंबर 2025 की आधी रात से लागू हो जाएगा. सबसे ज्यादा मुश्किल भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को हो रही है. क्योंकि 70 फीसदी H-1B वीजा भारतीयों को ही मिलते हैं.

ट्रंप ने शुक्रवार को ये प्रोजेकलेशन साइन किया. उनका कहना है कि ये कदम अमेरिकी वर्कर्स को बचाने के लिए है. लेकिन एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इससे यूएस टेक इंडस्ट्री को स्पेशलाइज्ड टैलेंट की भारी कमी हो जाएगी. व्हाइट हाउस के फैक्ट शीट के मुताबिक. अब नई एप्लीकेशन या रिन्यूअल के लिए कंपनियों को ये भारी फीस चुकानी पड़ेगी. पहले ये फीस सिर्फ कुछ हजार डॉलर थी. अब ये भारतीय रुपये में करीब 84 लाख के आसपास बैठेगी.

भारतीय आईटी जायंट्स जैसे TCS. Infosys और Wipro पर असर पड़ रहा है. क्योंकि ये कंपनियां हर साल हजारों H-1B वीजा पर यूएस भेजती हैं. नासकॉम के वाइस प्रेसिडेंट शिवेंद्र सिंह ने कहा.

“ये एक दिन की डेडलाइन से कंपनियों और प्रोफेशनल्स में घबराहट है. ऑनशोर प्रोजेक्ट्स रुक सकते हैं.”

इंडस्ट्री एनालिस्ट्स का अनुमान है कि भारत के 3-5 फीसदी आईटी वर्कफोर्स पर डायरेक्ट इंपैक्ट पड़ेगा.

अभी सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि 21 सितंबर की डेडलाइन मिस करने वाले फंस जाएंगे. न्यूयॉर्क के इमिग्रेशन लॉयर सायरस मेहता ने चेतावनी दी. “जो H-1B होल्डर्स बिजनेस या छुट्टी पर बाहर हैं. वे डेडलाइन से पहले यूएस न पहुंचे तो नई फीस चुकानी पड़ेगी.” भारत में मौजूद हजारों इंडियन वर्कर्स के लिए ये नामुमकिन सा लग रहा है. क्योंकि इंडिया से डायरेक्ट फ्लाइट भी टाइम पर नहीं पहुंचा सकती.

बिग टेक कंपनियां अलर्ट मोड में हैं. माइक्रोसॉफ्ट ने इंटरनल ईमेल भेजा.

“H-1B और H-4 वीजा वालों को यूएस में ही रहना चाहिए. बाहर वाले फौरन लौट आएं.”

अमेजन. मेटा और JPMorgan ने भी यही एडवाइज दी. रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि अमेजन ने 2025 के पहले हाफ में ही 12.000 से ज्यादा H-1B अप्रूवल लिए थे. माइक्रोसॉफ्ट और मेटा को 5000-5000 मिले. अब ये कंपनियां फीस वहन कर पाएंगी या नहीं. ये सवाल उठ रहा है.

ट्रंप के कॉमर्स सेक्रेटरी हावर्ड लुटनिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सफाई दी.

“अब कंपनियां सिर्फ रेयर स्किल्स वालों के लिए ही H-1B यूज करेंगी. ट्रेनिंग के लिए अमेरिकी सिटिजन्स को ही हायर करना होगा.”

उनका मकसद है कि लोअर-पेड जॉब्स में विदेशियों को न आने दिया जाए. लेकिन इंडियन कम्युनिटी लीडर्स इसे “रेक्लेस मूव” बता रहे हैं. कहते हैं कि इससे इनोवेशन को झटका लगेगा.

फायदे की बात करें तो लॉन्ग टर्म में भारत को गेन हो सकता है. अगर प्रोफेशनल्स वापस लौटे तो यहां स्टार्टअप्स और जॉब्स बढ़ेंगी. कनाडा. यूके जैसे देश अब इंडियन टैलेंट को आकर्षित कर रहे हैं. MEA ने कहा.

“हम इंप्लिकेशन्स स्टडी कर रहे हैं. ये फैमिलीज को डिसरप्ट कर सकता है.”

फिलहाल व्हाइट हाउस ने डेडलाइन एक्सटेंड करने की कोई बात नहीं की.

H-1B प्रोग्राम में हर साल 65.000 रेगुलर वीजा और 20.000 एडवांस डिग्री वालों के लिए होते हैं. तीन साल वैलिड. एक बार रिन्यू से छह तक. लेकिन अब ये फीस की वजह से लॉटरी में भी कम एंट्रीज होंगी. इंडियन स्टूडेंट्स जो यूएस यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होते हैं. उनके लिए भी रास्ता मुश्किल हो गया. कुल मिलाकर. ये पॉलिसी अमेरिकी जॉब्स प्रोटेक्ट करने के नाम पर ग्लोबल टैलेंट फ्लो को हिट कर रही है.

एक्सपर्ट्स सलाह दे रहे हैं. जो यूएस में हैं. वो अभी बाहर न निकलें. और कंपनियां जल्दी प्लानिंग करें. ये बदलाव 12 महीने के लिए है. एक्सटेंशन हो सकता है. लेकिन फिलहाल घबराहट का माहौल है.

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राजवीर सिंह एक पेशेवर कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें पत्रकारिता का अनुभव है और स्थानीय, सामुदायिक और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की गहरी समझ रखते हैं। वे अपने ज्ञान का उपयोग न केवल अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि, बल्कि अपनी प्रत्यक्ष समझ के आधार पर जानकारीपूर्ण लेख लिखने में करते हैं। वे केवल सूचना देने के लिए नहीं, बल्कि आवाज़ उठाने के लिए भी लिखते हैं।