रबी (Rabi) सीजन की ठंडी हवाओं के साथ ही खेतों में हल चलने और बीज (Seeds) बोने का दौर शुरू हो चुका है। किसान भाई अब खेत तैयार करने, बीज चुनने और बुआई की व्यवस्था में पूरी तन्मयता से लगे हैं। लेकिन कई क्षेत्रों में पानी की कमी (Water Shortage) एक बड़ी चुनौती बनी रहती है।
अच्छी बात यह है कि कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientists) ने अब ऐसी उन्नत गेहूँ की किस्में (Improved Varieties of Wheat) विकसित की हैं जो कम पानी में भी भरपूर फसल देती हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि किसान सही समय पर बुआई करें, खाद (Fertilizer) का संतुलित प्रयोग करें और सिंचाई (Irrigation) का क्रम ठीक रखें तो उत्पादन में 20–25% तक वृद्धि संभव है।
कम पानी वाले इलाकों के लिए खास किस्में (Seed Varieties for Low Water Areas)
जहाँ बारिश पर निर्भर खेती होती है या सिंचाई के साधन सीमित हैं, वहाँ सोन्ना 306 (Sonna 306) और WH 1142 गेहूँ की शानदार किस्में साबित हुई हैं।
सोन्ना 306 देसी किस्म है, जो लगभग 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (25 quintal/ha) उत्पादन देती है, और उचित देखभाल पर 59 क्विंटल तक भी पहुंच सकती है। यह सूखे को झेलने वाली और 150 दिनों में तैयार होने वाली फसल है।
WH 1142 सिर्फ़ 140 दिन में तैयार होती है और करीब 48 क्विंटल/हेक्टेयर औसत उत्पादन देती है। अच्छी परिस्थितियों में यह 62 क्विंटल तक भी जा सकती है।
इसके अलावा HI 1402, HI 1342 और WH 1635 जैसी किस्में भी कम पानी में बेहतरीन परफॉर्मेंस देती हैं। ये पौधे गहरी जड़ें जमाते हैं जिससे मिट्टी की नमी (Soil Moisture) लंबे समय तक बनी रहती है।
ज्यादा पानी वाले इलाकों के लिए हाई यील्ड (High Yield) वैरायटीज़
जहाँ नहर, ट्यूबवेल या नियमित बारिश की सुविधा है, वहाँ किसान WH 1270 जैसी हाई यील्ड (High Yield) किस्में बो सकते हैं।
WH 1270 लगभग 73–85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है।
इसके साथ HD 2967, HD 3086, HI 8759 और HD 3386 भी 70–84 क्विंटल तक उपज देती हैं।
इन किस्मों के साथ सही जल प्रबंधन (Water Management) और खाद संतुलन रखने पर पैदावार और भी बढ़ाई जा सकती है।
बुआई का सही समय (Right Sowing Time)
कम पानी वाली फसलों या अगेती बुआई (Early Sowing) के लिए नवंबर का पहला से आखिरी हफ्ता सबसे उपयुक्त माना गया है। इस समय मिट्टी में पर्याप्त नमी रहती है जिससे पौधा मजबूत निकलता है।
सामान्य बुआई का आदर्श समय नवंबर का तीसरा हफ्ता है।
बीज की मात्रा 40–50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें।
बीज को लगभग 4–5 सेंटीमीटर गहराई में बोएँ ताकि अंकुरण सही हो और पौधों को पक्षियों से नुकसान न हो।
खाद डालने से पहले मिट्टी की जांच (Soil Testing Before Fertilization)
बिना जांच के खाद डालना नुकसानदायक साबित हो सकता है। कृषि विशेषज्ञों का सुझाव है कि किसान पहले मिट्टी की जांच करा लें, फिर उसी के अनुसार उर्वरक (Fertilizer) मात्रा तय करें।
कम सिंचाई वाले खेतों में 36:24:12 NPK मिश्रण प्रयोग करें।
अच्छी सिंचाई वाले खेतों में 60:24:12 NPK के साथ 50 किग्रा सल्फर (Sulphur) और 150 किग्रा जिप्सम (Gypsum) भी डालें।
जिंक की कमी दिखे तो 25 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर मिलाएँ।
नाइट्रोजन (Nitrogen) का आधा हिस्सा बुआई के समय और बाकी पहली व दूसरी सिंचाई के साथ दें।
सिंचाई का सही क्रम (Proper Irrigation Schedule)
फसल की हर अवस्था में सिंचाई का तय क्रम पालन जरूरी है।
पहली सिंचाई – 20–22 दिन बाद (क्राउन रूट स्टेज)
दूसरी – कल्ले निकलते समय
तीसरी – बाल आने की अवस्था में
चौथी – दूधिया अवस्था
पाँचवीं – दाना भरने के चरण पर
इस क्रम से पानी देने पर फसल संतुलित बढ़ती है, जड़ें सड़ती नहीं और दाने भरे रहते हैं।
वैज्ञानिकों की सलाह अपनाएँ (Follow Agricultural Experts)
अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि सही किस्म, मिट्टी की जांच और समय पर सिंचाई से गेहूँ की पैदावार में 25% तक वृद्धि हो सकती है। कृषि विभाग लगातार किसानों को नई तकनीकों से जागरूक कर रहा है और बीज वितरण केंद्र खुलवाए जा रहे हैं। किसानों को चाहिए कि वे इन संसाधनों का भरपूर लाभ उठाएँ और स्मार्ट खेती (Smart Farming) को अपनाएँ।
इस बार गेहूँ की बुआई में समझदारी दिखाएँ—पानी की बचत के साथ पैदावार दोगुनी करें और खर्च घटाएँ।
