अहमदाबाद में हुए दर्दनाक एयर इंडिया प्लेन क्रैश को आज छह महीने पूरे हो गए, लेकिन पीड़ित परिवारों के मन में उठे सवाल अब भी वहीं खड़े हैं, जैसे समय ने उन्हें छुआ ही न हो। वडोदरा में मौजूद पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे अमेरिकी वकील माइक एंड्रयू ने आईएएनएस से बातचीत में बताया कि परिवार अब भी यह समझने की कोशिश में हैं कि उस सुबह आसमान में आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी।
एंड्रयू कहते हैं कि छह महीने बाद भी परिजनों के सामने वही मूल प्रश्न हैं—क्या हुआ, क्यों हुआ और इस हादसे की जड़ में कौन सी तकनीकी या मानवीय वजह छिपी है। वे बताते हैं कि परिवार एक तरफ अपने खोए प्रियजनों के दर्द से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मुआवजे और मौके से लिए गए निजी सामान की वापसी को लेकर भी लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
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इस बीच जांच टीमों की सक्रियता बढ़ी है। एंड्रयू ने खुलासा किया कि इस हफ्ते एएआईबी के जांचकर्ता वॉशिंगटन में नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड के साथ कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की बारीकी से जांच कर रहे थे। उनका कहना है कि अगर रिकॉर्डर की स्थिति बिल्कुल स्पष्ट होती, तो इतनी दूरी तय कर डेटा की जांच की जरूरत ही नहीं पड़ती। यह बात अपने आप में जांच के गहराते आयामों की ओर संकेत करती है।
वकील ने पहली बार इस जांच में कथित ‘सुसाइड एंगल’ पर भी बात की, लेकिन साफ कहा कि उपलब्ध डाटा ने अब तक इस थ्योरी को सिद्ध नहीं किया है। उन्होंने कहा कि जब तक सभी तकनीकी डेटा की पुष्टि नहीं हो जाती, किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी।
एंड्रयू ने एक और महत्वपूर्ण पहलू उठाया—विमान में संभावित इलेक्ट्रिकल फेल्योर। उन्होंने बताया कि टेकऑफ के शुरुआती चरण में ही रैम एयर टर्बाइन (RAT) का सक्रिय होना सामान्य स्थिति नहीं है और यह तभी होता है जब विमान के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में कोई गंभीर समस्या दिख रही हो। सर्वाइवर की गवाही में लाइट्स का अचानक बंद होना और फिर चालू होना भी इस दिशा में संकेत देता है।
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उन्होंने कहा कि टीम अब 787 मॉडल के पिछले वर्षों में आए इलेक्ट्रिकल मुद्दों का अध्ययन कर रही है, ताकि यह समझा जा सके कि कहीं पुरानी तकनीकी दिक्कतें इस हादसे से जुड़ तो नहीं रहीं।
परिवारों को कथित रूप से किसी रिलीज़ पर हस्ताक्षर कराने की कोशिशों को लेकर भी उन्होंने चिंता जताई और साफ कहा कि जांच पूरी तरह खुली है और ऐसे समय किसी भी परिवार से अपना दावा छोड़ने की उम्मीद करना ठीक नहीं है।
एंड्रयू का कहना है कि उनकी टीम किसी भी मनमानी समयसीमा के दबाव में नहीं आएगी। उनके लिए एक ही चीज़ अहम है—सुबूत क्या कह रहे हैं। “हम डेटा का पीछा करते हैं, डेडलाइन का नहीं,” उन्होंने कहा।
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छह महीने बाद भी अहमदाबाद क्रैश सिर्फ एक जांच नहीं, बल्कि उन परिवारों की जंग है जो जवाब, न्याय और अपने प्रियजनों की आखिरी निशानियां ढूंढ रहे हैं।
