किसान भाइयों आप सभी अच्छे से जानते है की रबी सीजन में (pea farming) मटर की खेती किसानों के लिए कमाई का शानदार मौका लेकर आती है। सितंबर से अक्टूबर मध्य तक (pea sowing time) बुवाई का सही समय होता है। बाजार में हरी मटर और दाल की मांग हमेशा बनी रहती है। सही किस्मों और देखभाल से किसान अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं। मटर की खेती न सिर्फ मुनाफा देती है बल्कि (soil fertility) मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है। आइए जानते हैं चार उन्नत (pea varieties) किस्मों की पूरी जानकारी और मटर की खेती के खास टिप्स भी आपको देते है।
काशी नंदिनी: तेजी से तैयार होगी और कीटों से सुरक्षित
काशी नंदिनी (Kashi Nandini) भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की देन है। इसकी खासियत है छोटे पौधे (47-51 सेमी) और तेज पैदावार। बुवाई के 32 दिन बाद फूल और 60-65 दिन में फलियां तैयार हो जाती हैं। प्रति हेक्टेयर 110-120 क्विंटल की पैदावार मिलती है। ये किस्म पत्ती खनिक और फली छेदक जैसे (pest-resistant) कीटों के प्रति सहनशील है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, झारखंड और कर्नाटक में इसे बोने की सलाह है। बाजार में इसकी फलियां अच्छा दाम दिलाती हैं।
ऑर्केट: मीठे दाने खाने में काफी स्वादिष्ट
ऑर्केट (Arket pea) एक यूरोपियन किस्म है, जो अपने मीठे और स्वादिष्ट दानों के लिए मशहूर है। इसकी तलवार जैसी फलियां 8-10 सेमी लंबी होती हैं, जिनमें 5-6 दाने होते हैं। बुवाई के 60-65 दिन में फसल तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 16-18 क्विंटल पैदावार देती है। शहरों में (green pea demand) हरी मटर की मांग के लिए ये किस्म शानदार है। इसका स्वाद उपभोक्ताओं को खूब पसंद आता है।
पंत मटर 155: रोगों से कम प्रभावित होती है
पंत मटर 155 (Pant Matar 155) चूर्ण फफूंद और फली छेदक जैसे (disease-resistant) रोगों के प्रति कम संवेदनशील है। बुवाई के 50-60 दिन में हरी फलियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। पूरी परिपक्वता के लिए 130 दिन लगते हैं। ये किस्म प्रति हेक्टेयर 15 टन तक पैदावार देती है। कम जोखिम और अच्छे दाम के लिए ये किसानों की पसंद है।
पूसा थ्री: जल्दी मुनाफा और ज्यादा पैदावार
पूसा थ्री (Pusa Three) उत्तर भारत के लिए खासतौर पर विकसित की गई है। बुवाई के 50-55 दिन में फलियां कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। हर फली में 6-7 दाने और प्रति एकड़ 20-21 क्विंटल की पैदावार मिलती है। इसकी आकर्षक फलियां बाजार में अच्छी कीमत दिलाती हैं। कम समय में ज्यादा मुनाफा चाहने वाले किसानों के लिए ये बेस्ट है।
बुवाई के लिए जरूरी टिप्स
किसान भाइयों ऊंची किस्मों के लिए 70-80 किलो और बौनी किस्मों के लिए 100 किलो बीज प्रति हेक्टेयर बीज आपको इस्तेमाल में लाने है और इसके साथ ही आपको पौधे से पौधे की दुरी का भी ध्यान रखना होगा। ऊंची किस्मों के लिए 30×10 सेमी और बौनी के लिए 22.5×10 सेमी गैप बहुत जरुरी है। बुवाई से पहले आपको बीजों का उपचार भी करना है। इसके लिए थायरम और कार्बनडाजिम (3 ग्राम/किलो बीज) या थायोमिथाक्जाम (3 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें जो की फसल को कीटों से बचाव करता है। इसके साथ ही राइजोबियम और पीएसबी कल्चर (5-10 ग्राम/किलो बीज) से उपचार करें।
उर्वरक और मिट्टी प्रबंधन
मटर की खेती में सही (fertilizer management) उर्वरक का इस्तेमाल जरूरी है। ऊंची किस्मों के लिए 20 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस, 40 किलो पोटाश और 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर डालें। बौनी किस्मों के लिए फास्फोरस और पोटाश 50-50 किलो करें। (organic manure) जैविक खाद से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। मटर मिट्टी में नाइट्रोजन जमा करती है, जो अगली फसल के लिए फायदेमंद है।
मटर की खेती (profitable farming) कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है। ऑफ-सीजन में (pea prices) कीमतें 50-100 रुपये प्रति किलो तक पहुंचती हैं। सही किस्म, समय पर बुवाई और देखभाल से आय दोगुनी हो सकती है। मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने में भी मटर मदद करती है। इस रबी सीजन में इन उन्नत किस्मों और टिप्स को अपनाकर अपने खेत को मुनाफे की मशीन बनाएं।

