चंडीगढ़ में देश भगत यूनिवर्सिटी का विशेष आयोजन: छोटे साहिबजादों और माता गुजरी जी की शहादत पर प्रेरक व्याख्यान
देश भगत यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ में साहिबजादा जोरावर सिंह, फतेह सिंह और माता गुजरी जी के शहीदी पर्व पर विशेष व्याख्यान हुआ। डॉक्यूमेंट्री प्रदर्शन, प्रेरक विचार और ऐतिहासिक प्रसंगों ने कार्यक्रम को यादगार बनाया।
- देश भगत यूनिवर्सिटी में शहीदी पर्व पर प्रेरक विशेष व्याख्यान
- छोटे साहिबजादों व माता गुजरी जी की विरासत पर डॉक्यूमेंट्री ने भावुक किया
- शिक्षा जगत में इतिहास को जीवंत रखने का अनूठा प्रयास
- चांसलर और अतिथियों ने युवाओं को विरासत से जुड़ने का संदेश दिया
चंडीगढ़। देश भगत यूनिवर्सिटी में शनिवार को एक ऐसा दृश्य देखने को मिला जिसने न सिर्फ परिसर का माहौल बदल दिया, बल्कि हर उपस्थित व्यक्ति के मन में इतिहास का गर्व भी जगा दिया। साहिबजादा बाबा जोरावर सिंह जी, साहिबजादा बाबा फतेह सिंह जी और माता गुजरी जी के शहीदी पर्व को समर्पित इस विशेष व्याख्यान कार्यक्रम ने युवा पीढ़ी को विरासत, आदर्श और त्याग का संदेश दिया। कार्यक्रम सिर्फ श्रद्धांजलि भर नहीं था बल्कि यह एक जागरूकता, सीख और आत्म-मंथन का मंच भी साबित हुआ। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि 300 से अधिक वर्षों बाद भी साहिबजादों की शहादत सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि आज के समय की प्रेरणा है। चांसलर डॉ. ज़ोरा सिंह और प्रो-चांसलर डॉ. तजिंदर कौर ने कार्यक्रम की कमान संभाली। उन्होंने कहा कि “इतिहास तभी जीवित रहता है जब आने वाली पीढ़ी उसे महसूस करे। हमारा मकसद युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ना है।”
कार्यक्रम में चढ़दी कला टाइम टीवी से डायरेक्टर सरदार अमृतपाल सिंह दर्दी, मैनेजिंग डायरेक्टर सरदार हरप्रीत सिंह, गुरुद्वारा मस्तुआना साहिब (सरी) के प्रधान सरदार महिंदर सिंह और होका टीवी के फिल्म निर्देशक सरदार पारुल प्रीत सिंह विशेष रूप से पहुंचे। फैकल्टी, वरिष्ठ अधिकारी और बड़ी संख्या में विद्यार्थी भी शामिल रहे जिससे कार्यक्रम एक सामूहिक भावनात्मक अनुभव बन गया। कार्यक्रम का एक अहम हिस्सा वह रहा जब होका टीवी द्वारा शहीदी जोड़ मेल पर आधारित डॉक्यूमेंट्री दिखाई गई। स्क्रीन पर साहिबजादों और माता गुजरी जी की गाथा उभरते ही पूरा हॉल शांत हो गया जैसे हर फ्रेम दिल को छू रहा हो। इस प्रस्तुति ने न सिर्फ जानकारी दी, बल्कि भावनाओं को भी जगाया।
प्रो-वाइस चांसलर प्रो. अमरजीत सिंह ने स्वागत भाषण में बताया कि इतिहास को जानना उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना उससे सीखना। वक्ताओं ने साहस, धर्मनिष्ठा, त्याग और संकल्प को आज की चुनौतियों से जोड़ते हुए कहा कि “युवा अगर अपने इतिहास को समझ ले तो भविष्य अपने आप बदल जाएगा।” चांसलर डॉ. जोरा सिंह ने सभी अतिथियों का सम्मान किया। कार्यक्रम संचालक प्रो. धर्मेंद्र सिंह के संचालन ने पूरे आयोजन को संवादात्मक बनाए रखा। समापन प्रो. राम सिंह गुरना के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। यूनिवर्सिटी में आयोजित यह व्याख्यान बताता है कि इतिहास को जिंदा रखने के लिए सिर्फ किताब काफी नहीं बल्कि अनुभव, चर्चा और भावनात्मक जुड़ाव जरूरी है। यह आयोजन आने वाले समय में ऐसे आयोजनों की नींव भी रखता है, जो इतिहास को भविष्य के लिए दिशा बना सकें।
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