ED की दो दिवसीय बड़ी कार्रवाई: रिचा इंडस्ट्रीज के ठिकानों से फर्जी हलफनामे, लग्जरी कारें और करोड़ों की फंडिंग के सबूत बरामद

गुरुग्राम/फरीदाबाद — प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिसंबर के शुरुआती दो दिनों में हरियाणा के इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में ऐसी कार्रवाई की, जिसने कारोबारी जगत में खलबली मचा दी है। रिचा इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और उसके प्रमोटरों से जुड़े आठ ठिकानों पर सोमवार और मंगलवार को चली तलाशी ने एक ऐसे नेटवर्क पर रोशनी डाली है, जिस पर बैंकों को भारी चूना लगाने और दिवालिया प्रक्रिया को मनमाफिक मोड़ने के आरोप हैं।

ईडी की यह कार्रवाई उस सीबीआई एफआईआर का सीधा विस्तार है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 2015 से 2018 के बीच कंपनी के प्रमोटर — संदीप गुप्ता, मनीष गुप्ता और सुशील गुप्ता — ने सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कंपनी के भीतर वित्तीय अनियमितताओं को छिपाया, फर्जी व्यवस्था तैयार की और लगभग 236 करोड़ रुपये का नुकसान बैंकों पर छोड़ दिया।

जांच से जुड़े अधिकारियों के अनुसार, सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद भी प्रमोटर पर्दे के पीछे से संचालन को प्रभावित करते रहे। आरोप है कि कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रोसेस (CIRP) को प्रभावित करने के लिए एक पूरी रणनीति बनाई गई। इसी साजिश के तहत प्रमोटरों ने एक शेल कंपनी — सारिगा कंस्ट्रक्शंस प्राइवेट लिमिटेड (SCPL) — बनाई, जिसमें रिचा इंडस्ट्रीज के ही एक पूर्व कर्मचारी को बेनामी की तरह आगे किया गया।

इस शेल कंपनी का कथित उद्देश्य था — कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स (CoC) में वोटिंग अधिकार हासिल कर प्रक्रिया को अपने पक्ष में झुकाना। अधिकारियों का दावा है कि SCPL न केवल फंड रूटिंग का माध्यम बनी, बल्कि बाद में उसी ने कंपनी को दोबारा खरीदने के लिए रिज़ॉल्यूशन प्लान भी दाखिल किया, जिससे पूरी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो गए।

तलाशी के दौरान ईडी ने डिजिटल डेटा, संवेदनशील दस्तावेज, वित्तीय रिकॉर्ड और कथित फर्जी हलफनामों सहित कई अहम सबूत कब्जे में लिए। इसके अलावा, प्रमोटरों और सहयोगियों से जुड़े बैंक खातों में 40 लाख रुपये से अधिक की राशि फ्रीज की गई, 8 लाख रुपये नकद और चार लग्जरी वाहन भी जब्त किए गए हैं।

जांच में एक और बड़ा आरोप सामने आया है — व्यक्तिगत दिवालियापन प्रक्रिया में संपत्ति छुपाना और गलत हलफनामे देना। संदीप गुप्ता, मनीष गुप्ता और श्वेता गुप्ता पर यह आरोप सीधे तौर पर दर्ज किया गया है।

रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल अरविंद कुमार की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। ईडी के अनुसार, संदिग्ध लेन-देन सामने आने के बावजूद उन्होंने आवश्यक कार्रवाई नहीं की, जिससे प्रमोटरों को फायदा मिला और दिवालिया प्रक्रिया की पारदर्शिता प्रभावित हुई।

एजेंसी का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआती चरण है और कई स्तरीय लेन-देन अब खंगाले जा रहे हैं। ईडी के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि आने वाले दिनों में “महत्वपूर्ण खुलासे” सामने आ सकते हैं।

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