हरियाणा कांग्रेस इन दिनों अपनी गुटबाजी के जाल में फंसकर सांस लेने को बेताब है। कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बीच की यह पुरानी रस्साकशी पार्टी को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। इसी बीच प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए अध्यक्ष के चयन की चर्चा ने तो सियासी हलकों में आग लगा दी है। सवाल वही पुराना है, क्या 53 साल बाद अहीरवाल बेल्ट से कोई नेता कमान संभालेगा। अगर ऐसा हुआ तो हुड्डा गुट को सीधा झटका लगेगा, क्योंकि दक्षिण हरियाणा का यह क्षेत्र लंबे अर्से से नेगलेक्ट महसूस कर रहा है।
दक्षिणी हरियाणा खासकर अहीरवाल इलाके में कांग्रेस की जड़ें कभी मजबूत थीं लेकिन अब तो हालत ये है कि 2019 के विधानसभा चुनावों में अहीर बहुल 11 सीटों पर पार्टी को सिर्फ एक ही जीत नसीब हुई, जबकि बीजेपी ने यहां अपनी पकड़ इतनी मजबूत कर ली कि विपक्ष के लिए सांस लेना मुश्किल हो गया। यही वजह है कि अब पार्टी के अंदर से आवाजें उठ रही हैं कि इस क्षेत्र को इग्नोर नहीं किया जा सकता। आखिरी बार 1970 के दशक में राव निहाल सिंह यहां से प्रदेश अध्यक्ष बने थे उसके बाद से तो उत्तर और मध्य हरियाणा के नेताओं का ही दबदबा रहा।
नए अध्यक्ष की रेस में सबसे ज्यादा नाम घूम रहा है कैप्टन अजय सिंह यादव का। ये छह बार विधायक रह चुके हैं, तीन बार मंत्री भी बने हैं, और कांग्रेस के राष्ट्रीय ओबीसी विभाग के हेड रह चुके हैं। गांधी परिवार के करीबियों में शुमार अजय सिंह यादव का परिवार तो राजनीति में पुराना खिलाड़ी है। उनके पिता राव अभय सिंह तीन बार विधायक थे, और बेटा चिरंजीव राव अभी रेवाड़ी से विधायक हैं। इस फैमिली बैकग्राउंड और जनाधार ने उन्हें सबसे मजबूत दावेदार बना दिया है।
अगर अहीरवाल से अजय सिंह यादव को अध्यक्ष बनाया गया, तो हरियाणा कांग्रेस के पूरे समीकरण उलट-पुलट हो जाएंगे। अभी तक हुड्डा खेमे की पकड़ सबसे मजबूत रही है, लेकिन दक्षिण से नया चेहरा आना उनके वर्चस्व को सीधी चुनौती देगा। पार्टी के हाईकमान को ये फैसला लेना होगा कि गुटबाजी को खत्म कर संगठन को मजबूत बनाना है या फिर पुरानी लकीर पर चलते रहना है। आने वाले दिनों में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस दक्षिण हरियाणा को वापस अपनी गोद में ले पाएगी, वरना बीजेपी का फायदा ही होगा।
