रेवाड़ी में करोड़ों के दावे, ज़मीनी हकीकत बेहाल: सार्वजनिक शौचालयों पर खर्च बेअसर

रेवाड़ी शहर में सार्वजनिक शौचालयों की हालत सुधारने के लिए लाखों रुपये खर्च किए गए, लेकिन हालात जस के तस हैं। गंदगी, टूटे नल-फ्लश और पानी की किल्लत से लोग परेशान हैं, नगर परिषद के कामकाज पर फिर सवाल खड़े हो गए हैं।

Rewari News: रेवाड़ी शहर में सार्वजनिक शौचालयों की हालत एक बार फिर सवालों के घेरे में है। लाखों रुपये के टेंडर, बार-बार मरम्मत के दावे और ठेकेदार बदलने की कवायद के बावजूद ज़मीनी हालात जस के तस बने हुए हैं। शहर के प्रमुख चौक-चौराहों पर बने शौचालय आज भी गंदगी, दुर्गंध और टूटे-फूटे ढांचे की पहचान बन चुके हैं।

शहर में कुल 22 सार्वजनिक शौचालय और 11 यूरिनल बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य रोज़ाना हजारों लोगों को बुनियादी सुविधा देना था। लेकिन महाराणा प्रताप चौक, गोकल गेट, बारा हजारी, नाईवाली चौक और रेलवे रोड जैसे व्यस्त इलाकों में बने शौचालयों की मौजूदा स्थिति लोगों को इस्तेमाल से पहले दो बार सोचने पर मजबूर कर देती है। कई जगह दरवाजे टूटे हैं, सीटें जर्जर हैं और पानी की व्यवस्था नाम मात्र की रह गई है।

स्थानीय लोगों के मुताबिक गोकल गेट स्थित शौचालय में लंबे समय से नियमित सफाई नहीं हो रही। वहीं महाराणा प्रताप चौक और बारा हजारी के पास बने शौचालयों में गंदगी इतनी ज्यादा है कि आसपास से गुजरना भी मुश्किल हो जाता है। बदबू और पानी की किल्लत ने हालात को और बदतर बना दिया है, खासकर महिलाओं और बुजुर्गों के लिए यह बड़ी परेशानी बन चुकी है।

नगर परिषद ने दिसंबर 2024 में हालात सुधारने के नाम पर 44 लाख 62 हजार रुपये की लागत से 22 शौचालयों और 7 यूरिनल स्पॉट की मरम्मत का टेंडर जारी किया था। काम शुरू भी हुआ, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसे सिर्फ औपचारिकता बताया जा रहा है। मरम्मत के बाद भी शौचालयों की स्थिति में कोई ठोस बदलाव नजर नहीं आया, जिससे खर्च की गई राशि पर सवाल उठने लगे हैं।

शहर में पांच स्थानों पर रखे गए मोबाइल टॉयलेट भी अब पूरी तरह बेकार हो चुके हैं। न तो उनकी मरम्मत हुई और न ही उन्हें हटाने या बदलने की कोई योजना सामने आई। कई जगह टंकियां टूटी हुई हैं, नल और फ्लश काम नहीं कर रहे और सीटें इस कदर खराब हैं कि इस्तेमाल करना जोखिम भरा हो गया है।

नगर परिषद ने पहले इन शौचालयों के रखरखाव और सफाई की जिम्मेदारी एक ठेकेदार को सौंपी थी, लेकिन लगातार शिकायतों के बाद उसे हटा दिया गया। इसके बावजूद हालात में अपेक्षित सुधार नहीं हो सका। नागरिकों का कहना है कि समस्या सिर्फ ठेकेदार बदलने से नहीं, बल्कि नियमित निगरानी और जवाबदेही तय करने से ही सुलझेगी।

रेवाड़ी के लोगों का कहना है कि स्वच्छता के दावों और योजनाओं के बीच ज़मीनी सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। शहर के प्रवेश द्वारों और मुख्य बाजारों में बदहाल शौचालय न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं, बल्कि शहर की छवि को भी नुकसान पहुंचाते हैं। नागरिकों ने मांग की है कि कागजी टेंडर और अधूरे काम की जगह ठोस कार्रवाई हो, ताकि सार्वजनिक शौचालय सच में इस्तेमाल लायक बन सकें।

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