Smart City Mission पर संसद में सवाल: करनाल–फरीदाबाद की 577 करोड़ की परियोजनाएं अब भी अधूरी
Haryana News (Smart City Mission): स्मार्ट सिटी मिशन की जमीन पर सच्चाई एक बार फिर संसद के भीतर सामने आई। सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने लोकसभा में करनाल और फरीदाबाद में चल रही स्मार्ट सिटी परियोजनाओं की धीमी रफ्तार को लेकर सवाल उठाए, तो जवाब में जो आंकड़े आए, उन्होंने शहरी विकास की मौजूदा तस्वीर पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, दोनों शहरों में स्मार्ट सिटी मिशन के तहत स्वीकृत 161 परियोजनाओं में से भले ही 139 पूरी हो चुकी हों, लेकिन 22 परियोजनाएं आज भी अधूरी हैं। इन अधूरी योजनाओं की कुल लागत करीब 577 करोड़ रुपये है और इनकी तय समयसीमा दिसंबर 2025 बताई गई है। संसद में हुई यह चर्चा सिर्फ निर्माण की स्थिति तक सीमित नहीं रही, बल्कि इससे शहरी योजनाओं की निगरानी, खर्च और जवाबदेही पर भी बहस तेज हो गई।
केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य राज्यमंत्री टोक्हान साहू ने सदन को बताया कि करनाल और फरीदाबाद के लिए कुल 2,136 करोड़ रुपये की परियोजनाएं मंजूर की गई थीं, जिनमें से अब तक 1,559 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। केंद्र की ओर से 980 करोड़ रुपये की सहायता का दावा किया गया था, जिसमें से 921 करोड़ रुपये का उपयोग होने की जानकारी दी गई। मंत्रालय ने दोनों शहरों की एसपीवी कंपनियों को साफ निर्देश दिए हैं कि शेष सभी परियोजनाएं हर हाल में दिसंबर 2025 तक पूरी की जाएं।
हालांकि, कागजों से इतर तस्वीर पर सांसद सैलजा ने तीखा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी का अर्थ केवल धन जारी करना नहीं होता, बल्कि समय पर और पारदर्शी ढंग से नागरिक सुविधाएं धरातल पर उतारना होता है। उनके अनुसार, करनाल और फरीदाबाद में कई परियोजनाएं तय समय से पीछे चल रही हैं, जिससे आम लोगों को मिलने वाले लाभ टलते जा रहे हैं।
आंकड़ों के ब्योरे में जाएं तो करनाल में 117 परियोजनाएं स्वीकृत थीं। इनमें से 105 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जिन पर करीब 801 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। वहीं 12 परियोजनाएं, जिनकी लागत लगभग 406 करोड़ रुपये है, अब भी लंबित हैं। खास बात यह है कि करनाल अब तक 59 करोड़ रुपये की केंद्रीय सहायता का उपयोग नहीं कर पाया है। दूसरी ओर, फरीदाबाद में 44 में से 34 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, जबकि 10 परियोजनाएं अभी निर्माणाधीन हैं, जिनकी लागत 171 करोड़ रुपये बताई गई है।
सैलजा ने सरकार से यह भी जानना चाहा कि जब स्मार्ट सिटी जैसे अहम शहरी विकास कार्यक्रम में इतनी देरी सामने आ रही है, तो समयसीमा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम क्या हैं। संसद में उठे इस सवाल ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या स्मार्ट सिटी मिशन केवल आंकड़ों की सफलता बनकर रह जाएगा या वाकई शहरों की जिंदगी में बदलाव ला पाएगा।
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