तेलंगाना मंत्री कोंडा सुरेखा के खिलाफ हैदराबाद कोर्ट ने गैर-जमानती वारंट जारी किया
हैदराबाद की राजनीति गुरुवार को उस समय अचानक गर्मा गई जब स्थानीय अदालत ने तेलंगाना सरकार की कैबिनेट मंत्री कोंडा सुरेखा के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। मामला सिर्फ एक अदालती औपचारिकता भर नहीं है बल्कि यह दो बड़े राजनीतिक खेमों के बीच बढ़ती तल्खी की नई कड़ी बन गया है। वारंट उस मानहानि केस से जुड़ा है जिसे बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री के.टी. रामाराव ने दायर किया है। अदालत ने सुनवाई को 5 फरवरी 2026 तक टालते हुए साफ कहा कि मंत्री को अब पेशी से बचना मुश्किल होगा। कोर्ट की टिप्पणी ने पूरे राजनीतिक गलियारों में यह संदेश दे दिया कि कई बार गैर-हाज़िर रहने की कीमत अब उन्हें किसी भी वक्त गिरफ्तारी के रूप में चुकानी पड़ सकती है। सुरेखा जो धार्मिक न्यास और वन मंत्री हैं और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मानी जाती हैं, बीआरएस नेतृत्व पर लंबे समय से खुलकर हमला करती रही हैं। यह केस भी उसी तेज होती बयानबाज़ी की परिणति माना जा रहा है।
केटीआर की शिकायत बीएनएस की धारा 222 और 223 के तहत दर्ज की गई थी। उनका आरोप है कि सुरेखा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अभिनेत्री सामंथा और नागा चैतन्य के तलाक का जिम्मा गलत तरीके से उन पर डाल दिया था। यह बयान न सिर्फ राजनीतिक रूप से असहज था बल्कि निजी हमले की तरह देखा गया जिसे केटीआर ने अपनी गरिमा पर चोट बताया। अदालत ने इसी साल अगस्त में बीआरएस द्वारा दायर मानहानि प्रकरण का संज्ञान लेते हुए पुलिस को सुरेखा के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था। समीक्षा में कोर्ट को यह भी लगा कि बीएनएस की धारा 356, 222 और 223 के तहत मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए शुरुआती सबूत पर्याप्त हैं।
इस पूरे विवाद ने तब और तूल पकड़ा जब अभिनेता नागार्जुन ने भी टिप्पणी को अपने परिवार की प्रतिष्ठा के खिलाफ बताते हुए अलग से मानहानि का केस दायर किया। हालांकि सुरेखा के सार्वजनिक माफ़ीनामे के बाद उन्होंने नवंबर में अपना मामला वापस ले लिया था। सामंथा और नागा चैतन्य का तलाक 2021 में हो चुका है लेकिन इसे केटीआर से जोड़ना राजनीतिक हलकों में अभूतपूर्व माना गया। बीआरएस ने इसे शुरुआत से ही राजनीतिक साजिश करार दिया था जबकि अब अदालत की कार्रवाई ने पूरे घटनाक्रम को एक नई गंभीरता दे दी है। गुरुवार का वारंट यह साफ संकेत है कि यह मुद्दा अब सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह सीधे कानून की चौखट तक पहुंच चुका है जहां अगली तारीख पर पूरे प्रदेश की निगाहें टिकी होंगी।
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