बांग्लादेश में मीडिया पर हमले: प्रेस सचिव की बेबसी ने खोली अंतरिम सरकार की कमजोरी

ढाका में मीडिया दफ्तरों पर हिंसक हमलों के बाद प्रेस सचिव शफीकुल आलम की फेसबुक पोस्ट ने सरकार की बेबसी उजागर कर दी। सुरक्षा में चूक, देर से पहुंची मदद और बढ़ते भीड़तंत्र ने बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े किए।

  • मीडिया दफ्तरों पर हमले, सरकार बेबस
  • प्रेस सचिव की फेसबुक पोस्ट ने खोली सुरक्षा की पोल
  • सवालों के घेरे में अंतरिम सरकार की कानून-व्यवस्था
  • पत्रकारों की जान बची, लेकिन भरोसा जलकर राख

बांग्लादेश में मीडिया की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम की एक सोशल मीडिया पोस्ट ने सत्ता के भीतर की बेबसी को सार्वजनिक कर दिया है। यह पोस्ट ऐसे वक्त सामने आई है जब राजधानी ढाका में दो बड़े मीडिया संस्थानों पर हिंसक भीड़ ने हमला किया।

फेसबुक पर लिखे अपने संदेश में शफीकुल आलम ने माना कि 18 दिसंबर की रात उन्हें पत्रकार मित्रों के घबराए हुए फोन आए। मदद के लिए उन्होंने सही लोगों से संपर्क किया लेकिन सहायता समय पर नहीं पहुंच पाई। सुबह होने तक पत्रकार सुरक्षित निकल आए मगर तब तक मीडिया दफ्तरों को भारी नुकसान हो चुका था।

ढाका में आग और डर की रात

19 दिसंबर की रात ढाका में The Daily Star और Prothom Alo के दफ्तरों पर भीड़ ने धावा बोला। कर्मचारियों के साथ धक्का-मुक्की हुई, तोड़फोड़ की गई और आगजनी तक की नौबत आ गई। हालात इतने बिगड़े कि जान बचाने के लिए पत्रकारों और स्टाफ को दफ्तर छोड़कर भागना पड़ा।

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प्रोथोम आलो ने बाद में बताया कि हमले की आशंका पहले ही जताई जा चुकी थी और वरिष्ठ सरकारी स्तर से लेकर कानून प्रवर्तन एजेंसियों तक सुरक्षा की मांग की गई थी। इसके बावजूद मदद देर से पहुंची और तब तक नुकसान हो चुका था।

“अगर सरकार के लोग ही लाचार हैं, तो आम लोग कहां जाएं?”

प्रेस सचिव की पोस्ट के बाद बांग्लादेश की सबसे बड़ी बंगाली अखबार में एक तीखा सवाल उठा। अगर सरकार के प्रभावशाली चेहरे ही खुद को असहाय बता रहे हैं तो आम नागरिक किस पर भरोसा करें? सोशल मीडिया पर भी गुस्सा फूटा। कई यूजर्स ने सीधे तौर पर अंतरिम सरकार को कठघरे में खड़ा किया और कहा कि यह सब उसी की निगरानी में हुआ।

कुछ प्रतिक्रियाओं में यह भी कहा गया कि पहले जरूरी कदम नहीं उठाए गए और अब नतीजों का सामना करना पड़ रहा है।

कानून-व्यवस्था पर गहराता संकट

मीडिया विश्लेषक निशात सुल्ताना ने अपने कॉलम में लिखा कि सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि का इस तरह सार्वजनिक रूप से लाचार दिखना अपने आप में खतरनाक संकेत है। उनके मुताबिक, अंतरिम सरकार शुरुआत से ही अपराध और अराजकता पर काबू पाने में नाकाम रही है।

उन्होंने मौजूदा हालात की तुलना उस फिल्मी दृश्य से की जहां पुलिस अंत में आकर कहती है की कानून हाथ में मत लो। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां सुरक्षा एजेंसियां पर्दे के पीछे ही रह जाती हैं और सड़कों पर भीड़ अपना कानून चला रही है।

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