उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने से भारी तबाही मच गई। इस आपदा में कम से कम चार लोगों की मौत हो गई जबकि कई अन्य लापता बताए जा रहे हैं। चश्मदीदों के अनुसार बाढ़ के पानी ने पूरे गांव को तबाह कर दिया जिसमें होटल, घर और सड़कें शामिल हैं। स्थानीय निवासी और चश्मदीद मुखवा गांव के सुभाष चंद्र सेमवाल ने इस भयावह मंजर को साझा करते हुए बताया कि यह 1978 की उस त्रासदी की याद दिलाता है जब 8 और 9 अगस्त को इसी तरह की बाढ़ ने क्षेत्र को हिला कर रख दिया था।
1978 की बाढ़ की भयावहता दोहराई
सेमवाल ने बताया कि 1978 में भगीरथी नदी के पास डबरानी में एक झील बनने से बाढ़ आई थी जिसने नीचे के गांवों, सड़कों और पुलों को बहा दिया था। इस बार की आपदा भी उस समय की तबाही की याद दिलाती है। उन्होंने कहा “मैंने अपने जीवन में कभी ऐसा भयावह मंजर नहीं देखा। पानी ने सब कुछ तबाह कर दिया।” उनकी बातों से स्पष्ट है कि इस बार की बाढ़ ने स्थानीय लोगों को गहरे सदमे में डाल दिया है।
राहत और बचाव कार्य जारी
बचाव दल जिसमें भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन शामिल हैं, मौके पर पहुंचकर राहत और बचाव कार्य में जुटे हैं। अब तक 130 लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है लेकिन कई अन्य अभी भी लापता हैं। खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टरों की मदद से बचाव कार्य में देरी हो रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आंध्रप्रदेश से अपनी यात्रा बीच में ही छोड़कर देहरादून लौट आए और राज्य आपातकालीन ऑपरेशन केंद्र में स्थिति की समीक्षा की।
सड़कें बंद, संपर्क पूरी तरह से टूटा
बाढ़ और भूस्खलन के कारण उत्तरकाशी-हर्षिल सड़क कई स्थानों पर बंद हो गई है। प्रशासन सड़कों को साफ करने और संपर्क बहाल करने के प्रयास में लगा हुआ है। साथ ही स्थानीय लोगों को आपदा प्रभावित क्षेत्रों से दूर रहने की सलाह दी गई है।
इस आपदा ने एक बार फिर उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता और उनके प्रभाव को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसे घटनाओं की संख्या में वृद्धि हो रही है जिससे क्षेत्र की तैयारी और आपदा प्रबंधन पर पुनर्विचार की जरूरत है।
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