गाजीपुर में बदली कारीगरों की तक़दीर: विश्वकर्मा योजना से मशीनें, ट्रेनिंग और ₹4,000 की सीधी मदद
गाजीपुर के कारीगरों को विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत 10 दिन की ट्रेनिंग, मुफ्त टूलकिट और ₹4,000 की सीधी मदद मिली है। इससे उनका काम तेज़, सुरक्षित और बेहतर गुणवत्ता वाला हो गया है।
- गाजीपुर के कारीगरों को 10 दिन की ट्रेनिंग और सीधे खाते में ₹4,000
- हाथ के औजारों से मशीनों तक, काम की रफ्तार और गुणवत्ता दोनों बदली
- महिलाओं के लिए रोज़गार और आमदनी के नए रास्ते खुले
- सरकारी टूलकिट से किराये की मशीनों पर निर्भरता खत्म
उत्तर प्रदेश के Ghazipur district में बांस से टोकरियां और सूप बनाने वाले कारीगरों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी अब पहले जैसी नहीं रही। हाथों में कट लगना, धीमी रफ्तार से काम और मशीनों के लिए किराया, ये सब बातें अब पीछे छूटती दिख रही हैं। वजह है केंद्र सरकार की विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना, जिसने यहां के कारीगरों के काम करने के तरीके को सीधा बदल दिया है।
हाथ के औजारों से मशीनों तक का सफर
गाजीपुर की रहने वाली संजू वर्षों से टोकरियां और सूप बनाकर घर चलाती हैं। पहले बांस काटने के लिए चाकू और कटर ही सहारा थे। मशीन की जरूरत पड़ती तो किराया देना पड़ता था।
संजू बताती हैं कि योजना के तहत मिली टूलकिट में अब ऐसी मशीनें हैं, जिनसे बांस काटना और आकार देना आसान हो गया है। काम जल्दी होता है और मेहनत भी कम लगती है।
उनके मुताबिक, इस बदलाव से सिर्फ समय ही नहीं बचा, बल्कि तैयार सामान की क्वालिटी भी पहले से बेहतर हो गई है। इससे बाज़ार में उनके उत्पादों की मांग बढ़ने की उम्मीद है।
ट्रेनिंग ने बढ़ाया आत्मविश्वास
योजना के तहत कारीगरों को 10 दिन की ट्रेनिंग भी दी गई। इस दौरान नए तरीके सिखाए गए, जिनसे काम ज्यादा सटीक और टिकाऊ हो सके। संजू कहती हैं कि ट्रेनिंग में ऐसी बारीकियां समझ आईं, जो पहले कभी नहीं सिखाई गई थीं। अब वही काम पहले से ज्यादा आत्मविश्वास के साथ किया जा रहा है।
बिना एक रुपया खर्च किए मिली मदद
कारीगरों के लिए सबसे बड़ी राहत यह रही कि टूलकिट के लिए उन्हें अपनी जेब से कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ा। इसके अलावा, ट्रेनिंग पूरी होने के बाद ₹4,000 सीधे बैंक खाते में जमा हुए। यह रकम कई परिवारों के लिए उस समय सहारा बनी, जब रोज़मर्रा का खर्च निकालना मुश्किल हो जाता है।
प्रशासन का पक्ष
जिला उद्योग विभाग के अधिकारी प्रवीण कुमार मौर्य के मुताबिक, यह योजना केंद्र सरकार की पहल है। अब तक 25 टोकरी बुनकरों को टूलकिट दी जा चुकी है। पहले जहां सारा काम हाथ से होता था अब मशीनों से तेज़ी और बेहतर गुणवत्ता के साथ उत्पादन संभव हो पाया है। ट्रेनिंग के बाद दी गई आर्थिक सहायता से कारीगरों को शुरुआती सहारा भी मिला है।
महिलाओं के लिए नई उम्मीद
एक और लाभार्थी लक्ष्मी बताती हैं कि टूलकिट से उनका काम काफी आसान हो गया है। कम समय में ज्यादा काम हो पाने से आमदनी बढ़ने की संभावना बनी है। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए यह योजना सिर्फ एक सरकारी मदद नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ठोस कदम बनकर उभर रही है।
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