राजस्थान में हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को खेजड़ली बलिदान दिवस मनाया जाता है। यह दिन उन 363 बिश्नोई वीर-वीरांगनाओं को याद करने का है, जिन्होंने 1730 में खेजड़ी वृक्षों की रक्षा के लिए अपने प्राण दे दिए। जोधपुर के पास खेजड़ली गांव में हुई इस घटना ने पर्यावरण संरक्षण की मिसाल कायम की, जो आज भी दुनिया भर में प्रेरणा देती है।
अमृता देवी का ऐतिहासिक बलिदान
वर्ष 1730 में जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के आदेश पर सैनिकों ने खेजड़ी वृक्ष काटने शुरू किए। बिश्नोई समुदाय के लिए यह वृक्ष पवित्र है। अमृता देवी बिश्नोई ने इसका विरोध किया और कहा, “सिर सांटे रूख रहे तो भी सस्तो जान।” वे और उनकी तीन बेटियां वृक्षों से लिपट गईं, लेकिन सैनिकों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद 83 गांवों से बिश्नोई समुदाय के लोग जुटे और वृक्षों की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किए। इस बलिदान से प्रभावित होकर महाराजा ने वृक्ष कटाई पर रोक लगा दी।
पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा
खेजड़ली बलिदान विश्व का पहला बड़ा पर्यावरण संरक्षण आंदोलन माना जाता है। इसने 1973 के चिपको आंदोलन को भी प्रेरित किया। खेजड़ी वृक्ष थार रेगिस्तान में जल संरक्षण और पशु चारे के लिए महत्वपूर्ण हैं। बिश्नोई समुदाय आज भी इनकी रक्षा में अग्रणी है। भारत सरकार ने इस बलिदान के सम्मान में ‘अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार’ शुरू किया है।
खेजड़ली बलिदान दिवस के अवसर पर जोधपुर के खेजड़ली गांव में वृक्षों की रक्षा के लिए मां अमृता देवी बिश्नोई एवं 363 प्रकृति-सेवियों द्वारा दिए गए अमर बलिदान को कोटि-कोटि नमन। pic.twitter.com/3ZcxYYMJ9g
— Diya Kumari (@KumariDiya) September 2, 2025
राजस्थान सरकार के प्रयास
इस साल भी राजस्थान सरकार ने खेजड़ली बलिदान दिवस पर कई कार्यक्रम आयोजित किए। बारमेर और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं ने वृक्षारोपण कर इन शहीदों को श्रद्धांजलि दी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा, “इन अमर शहीदों का बलिदान हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता है।” यह दिन हमें याद दिलाता है कि प्रकृति की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है।
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