Rajasthan News: जयपुर में बीते कुछ वर्षों में एक प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी—किसी भी हादसे या विवाद पर लोग मृतक का शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन करने लगे। कई बार इससे शहर ठप पड़ता, एंबुलेंस तक फँस जाती और तनाव बढ़ जाता था। अब राजस्थान सरकार ने इस तस्वीर को बदलने का बड़ा कदम उठाया है। राज्य में ‘मृतक शरीर सम्मान कानून’ औपचारिक रूप से लागू कर दिया गया है, जो देश में अपनी तरह का पहला कानून माना जा रहा है।
सरकार का दावा है कि यह कानून सिर्फ “कानून-व्यवस्था” को संभालने का नहीं, बल्कि मृतकों की गरिमा की रक्षा करने का एक सामाजिक प्रयास है। अधिकारियों का कहना है कि विरोध का हक सबको है, लेकिन शव को सड़क पर रखकर दवाब बनाना किसी भी रूप में मानवीय नहीं है।
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कानून में क्या है नया और कितना सख्त है प्रावधान?
नई अधिसूचना में साफ लिखा गया है कि यदि कोई गैर-परिवार सदस्य राजनीतिक प्रदर्शन या किसी आंदोलन के दौरान शव को सड़क या सार्वजनिक जगह पर रखता है, तो उसे 6 महीने से 5 साल तक की जेल हो सकती है। इसके साथ जुर्माने का प्रावधान भी है, जिसे गंभीर मामलों में बढ़ाया जा सकता है।
इतना ही नहीं—अगर कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा 24 घंटे का नोटिस दिए जाने के बाद भी परिवार पक्ष शव लेने से इनकार करता है, तो परिवार के सदस्यों पर भी एक साल की सजा लागू हो सकती है। इसके बाद पुलिस शव को अपने कब्जे में लेगी, अंतिम संस्कार कराएगी और जिम्मेदार लोगों पर कानूनी कार्रवाई करेगी।
प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य परिवारों पर दबाव बनाना नहीं, बल्कि “शव को सड़क पर रखकर किसी भी प्रकार का जनजीवन बाधित करने वाली राजनीति को समाप्त करना” है।
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कब बना था यह कानून और अभी लागू क्यों हुआ?
दिलचस्प बात यह है कि यह कानून नया नहीं है। अशोक गहलोत सरकार ने जुलाई 2023 में विधानसभा से इसे पास करा लिया था, लेकिन उस समय भाजपा विपक्ष में थी और उसने बिल का कड़ा विरोध किया था। इसलिए इसे लागू करने की प्रक्रिया अटक गई।
अब, भाजपा सरकार के सत्ता में आते ही दो साल बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने बिना एक भी शब्द बदले इसे लागू कर दिया। राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर चर्चा है कि जिस कानून का कभी विरोध हुआ था, वही आज जस का तस लागू कर दिया गया—यह अपने आप में एक अनोखी राजनीतिक स्थिति दिखाता है।
कानून लागू होने के बाद पुलिस और प्रशासन दोनों को नई कार्यप्रणाली अपनानी होगी। वहीं सामाजिक संगठनों में इस बात पर बहस तेज है कि क्या इससे विरोध की परंपराओं में सुधार होगा या नए विवाद पैदा होंगे।