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Rice Price Crash: 8 साल में सबसे सस्ते हुए चावल, किसानों की आमदनी पर संकट
वैश्विक चावल की कीमतें 2017 के बाद सबसे निचले स्तर $372.50/टन पर पहुंचीं, जो भारत के निर्यात प्रतिबंध हटाने और रिकॉर्ड फसल से हुआ। मांग में कमी और आपूर्ति बढ़ने से एशिया के किसानों की आजीविका पर संकट। संतुलन के लिए मांग बढ़ना जरूरी।

वैश्विक बाजार में चावल की कीमतें पिछले आठ साल में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं, जिससे एशिया के लाखों किसानों की आजीविका पर गहरा असर पड़ रहा है। इस गिरावट की वजह रिकॉर्ड तोड़ फसल और भारत द्वारा निर्यात प्रतिबंध हटाने जैसे कदम हैं, जिसने बाजार में चावल की आपूर्ति को बढ़ा दिया है।
थाईलैंड के 5 फीसदी टूटे सफेद चावल, जो वैश्विक बाजार में कीमतों का एक प्रमुख मानक है, की कीमत हाल ही में 372.50 डॉलर प्रति टन तक गिर गई। यह पिछले साल के मुकाबले 26 फीसदी की कमी है और 2017 के बाद का सबसे निचला स्तर है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के मुताबिक, इस साल का ऑल राइस प्राइस इंडेक्स 13 फीसदी नीचे है।

तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर समरendu मोहंती ने बताया, "बात साफ है, बाजार में चावल का स्टॉक बहुत ज्यादा है। भारत में पिछले साल चावल का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर था, और इस साल की फसल भी नया रिकॉर्ड बनाने की ओर बढ़ रही है।"
भारत की नीतियों का असर और थाईलैंड-वियतनाम में मजबूत उत्पादन
पिछले साल भारत ने चावल के निर्यात पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे, जिससे कीमतें 2008 के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थीं। इससे उपभोक्ताओं में घबराहट की स्थिति बनी और कई देशों ने अपने बाजारों को बचाने के लिए सख्त कदम उठाए। लेकिन 2023-24 में भारत की रिकॉर्ड फसल और निर्यात नियमों में ढील ने कीमतों को नीचे लाने में बड़ी भूमिका निभाई। राबोबैंक के विश्लेषक ऑस्कर तजाक्रा ने कहा, "भारत की नीति में बदलाव और थाईलैंड-वियतनाम में मजबूत उत्पादन ने वैश्विक चावल उत्पादन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।"
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मांग में कमी का कैसा असर है
दूसरी ओर, चावल की मांग में भी कमी देखी जा रही है। इंडोनेशिया, जो चावल का बड़ा खरीदार है, इस साल बाजार में ज्यादा सक्रिय नहीं रहा। वहीं, फिलीपींस ने अपनी घरेलू फसल को बचाने के लिए अक्टूबर तक आयात पर रोक लगा दी है।
भारत में किसानों की स्थिति क्या दर्शाती है
भारत में चावल की मजबूत आपूर्ति देश की कृषि प्रगति को दर्शाती है। ज्यादातर चावल उत्पादक क्षेत्रों में अब सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, जिससे फसलें सूखे और अनियमित मानसून के प्रति ज्यादा लचीली हो गई हैं। इसके अलावा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और सरकारी बोनस की वजह से किसान हर साल नए और बेहतर बीज खरीद रहे हैं, जिससे पैदावार और चावल का रकबा दोनों बढ़ रहे हैं।
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प्रोफेसर मोहंती ने कहा, "किसानों के लिए धान सबसे फायदेमंद फसल है। MSP और बोनस की गारंटी है, और जोखिम भी कम है।" हालांकि, वैश्विक कीमतों में गिरावट का असर उन किसानों पर पड़ सकता है जो निर्यात पर निर्भर हैं।
अब आगे क्या हो सकता है?
विशेषज्ञों का कहना है कि चावल की कीमतों में स्थिरता तभी आएगी जब वैश्विक मांग और आपूर्ति में संतुलन बनेगा। फिलहाल, भारत, थाईलैंड और वियतनाम जैसे बड़े उत्पादक देशों की मजबूत फसलें बाजार में आपूर्ति को और बढ़ा सकती हैं। इससे उपभोक्ताओं को तो फायदा होगा, लेकिन छोटे किसानों के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है।
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भारत कृषि प्रधान देश है और किसान देश की आत्मा है। किसानों के लिए जब कुछ किया जाता है तो मन को सुकून मिलता है। टेक्सटाइल विषय से स्नातक करने के बाद अपने लिखने के शौख को आगे बढ़ाया और किसानों के लिए कलम उठाई। रोजाना किसानों से जुडी ख़बरें और बिज़नेस से जुडी ख़बरों को लिखकर आप तक पहुंचाने का सिलसिला आगे भी ऐसे ही जारी रहने वाला है।