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हरियाणा की नई जमीन अधिग्रहण नीति पर हाई कोर्ट का नोटिस, किसानों ने उठाए सवाल
पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा की नई जमीन अधिग्रहण नीति पर नोटिस जारी किया। 35,500 एकड़ उपजाऊ जमीन के लिए 10 IMT की नीति पर सवाल, किसानों ने पारदर्शिता और मुआवजे की कमी का आरोप लगाया। कोर्ट में अगली सुनवाई का इंतजार।

चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की नई जमीन अधिग्रहण नीति पर कड़ा रुख अपनाया है। यह नीति, जो 9 जुलाई 2025 को लागू की गई थी, 10 औद्योगिक मॉडल टाउनशिप (आईएमटी) स्थापित करने के लिए 35,500 एकड़ उपजाऊ जमीन के अधिग्रहण से जुड़ी है। कोर्ट ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
अलेवा गांव के किसान सुरेश कुमार ने इस नीति को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि यह नीति किसानों के हितों के खिलाफ है और इसमें पारदर्शिता की कमी है। याचिकाकर्ता के वकील हरविंदर पाल सिंह ईशर ने कोर्ट में बताया कि यह नीति 'राइट टू फेयर कॉम्पेनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट, 2013' के जरूरी प्रावधानों का उल्लंघन करती है।

नीति में क्या है खामी?
सुरेश कुमार की याचिका में कहा गया है कि सरकार ने जमीन अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन (सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट) और ग्राम सभा के साथ चर्चा जैसे जरूरी कदमों को नजरअंदाज किया है। इसके अलावा, नीति में मुआवजे की दर को कलेक्टर रेट के तीन गुना तक सीमित किया गया है, जो 2013 के एक्ट के मुताबिक अपर्याप्त है। इससे एक ही क्षेत्र में अलग-अलग जमीन मालिकों को अलग-अलग मुआवजा मिलने का खतरा है, जो भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है।
सरकार का पक्ष
हरियाणा सरकार का कहना है कि यह नीति विकास कार्यों को गति देने के लिए बनाई गई है। इसके तहत ई-भूमि पोर्टल के जरिए जमीन के लिए आवेदन मांगे गए हैं। सरकार का दावा है कि यह नीति औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगी और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी। हालांकि, कोर्ट ने इस नीति की वैधानिकता पर सवाल उठाए हैं और सरकार से जवाब मांगा है।
किसानों की चिंता
किसानों का कहना है कि उनकी उपजाऊ जमीन को कम मुआवजे पर लिया जा रहा है, जिससे उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से इस नीति को रद्द करने की मांग की है, ताकि किसानों के हितों की रक्षा हो सके और जमीन अधिग्रहण में पारदर्शिता सुनिश्चित हो।
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई में सरकार के जवाब का इंतजार करेगा। इस नीति का भविष्य कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है। फिलहाल, यह मामला हरियाणा के किसानों और सरकार के बीच तनाव का कारण बना हुआ है।
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